बुद्धयुगीन प्रमुख गणराज्य - SSC NOTES PDF
बुद्धयुगीन-प्रमुख-गणराज्

बुद्धयुगीन प्रमुख गणराज्य

बुद्धयुगीन प्रमुख गणराज्यों का वर्णन।छठी शतब्दी ई.पू. के गणराज्यों पर एक टिप्पणी।

No:1. बुद्धयुगीन प्रमुख गणराज्य-प्रारम्भ में इतिहासकारों का एक बहुत बड़ा वर्ग यह मान चुका था कि प्राचीन भारत में केवल राजतन्त्रों का ही अस्तित्व था

No:2. लेकिन 1903 में रिचर्ड डेविस द्वारा गणतन्त्रों की खोज के कारण यह धारणा बदल गई और सभी ने उस बात को स्वीकार कर लिया कि राजतन्त्रों के साथ ही साथ गणतन्त्रों का भी अस्तित्व था।

No:3. प्राचीन भारत के गणराज्यों के विषय में साहित्यिक अभिलेखीय एवं मुद्रा सम्बन्धी साक्ष्यों से जानकारी प्राप्त होती है।

No:4. बौद्ध तथा जैन ग्रन्थों से बुद्ध कालीन 10 प्रमुख गणराज्यों के विषय में जानकारी मिलती है।

(1). कपिलवस्तु के शाक्य Shakyas of Kapilavastu

No:1. यह गणराज्य निवर्तमान नेपाल की तराई में स्थित था।

No:2. उसकी राजधानी कपिलवस्तु थी जिसकी पहचान नेपाल में स्थित आधुनिक तिलौटाकोट से की जाती है।

No:3. कपिलवस्तु के अतिरिक्त इस गणराज्य में अनेक नगर थे- चातुमा, सामगाम, खामदुस्स, सिलावता, नगरक, देवदह, संक्कर आदि।

No:4. बुद्ध की माता देवदह की ही राजकन्या थी। गौतम बुद्ध का जन्म इसी गणराज्य में हुआ था।

No:5. बुद्ध से सम्बन्धित होने के कारण इस गणराज्य का महत्व काफी बढ़ गया।

(2). सुमसुमार पर्वत के भग्ग Bhags of Susumar Mountain

No:1. सुमसुमार पर्वत का समीकरण मिर्जापुर जिले में स्थित वर्तमान चुनार से किया गया है।

No:2. ऐसा लगता है कि भरग ऐतरेय ब्राह्मण में उल्लिखित ‘भर्गव’ वंश से सम्बन्धित थे।

No:3. भग्ग गणराज्य के अधिकार क्षेत्र में विन्ध्य क्षेत्र की यमुना तथा सोन नदियों के बीच का प्रदेश सम्मिलित था।

No:4. भग्ग लोग वत्सों की अधीनता स्वीकार करते थे।

No:5. ऐसा ज्ञात होता है कि सुमसुमार पर्वत पर वत्सराज उदयन का पुत्र बोधि निवास करता था।

(3). अलकप्प के बुलि Alkapp’s bullies

No:1. उस गणराज्य में वर्तमान बिहार के शाहाबाद आरा तथा मुजफ्फरपुर के जिले शामिल थे।

No:2. उसकी राजधानी वेठद्वीप थी।

No:3. बुलि सम्भवतः बौद्ध मतानुयायी थे।

(4). केसपुत्त के कलाम Kesputta’s Kalam

No:1. सम्भवतः यह गणराज्य वर्तमान उ.प्र. के सुल्तानपुर जिले के समीपवर्ती भागों में स्थित था।

No:2. वैदिक साहित्य से ज्ञात होता है कि कलामों का सम्बन्ध पंचाल जनपद के ‘केशियों’ के साथ था।

No:3. इसी गणराज्य के आलारकालाम नामक आचार्य से, जो उरुवेला के समीप रहते थे, महात्मा बुद्ध ने गृह त्याग करने के बाद सर्वप्रथम उपदेश ग्रहण किया था।

(5). रामगाम ( रामग्राम) के कोलिय Koliyas of Ramgam (Ramgram)

No:1. यह शाक्य गणराज्य के पूर्व में स्थित था। दक्षिण में यह गणराज्य सरयू नदी तक विस्तृत था।

No:2. शाक्य और कोलिय राज्यों के बीच रोहिणी नदी बहती थी।

No:3. दोनों राज्यों के लोग सिंचाई के लिए इसी नदी के जल पर निर्भर करते थे।

No:4. नदी के जल के लिए उनमें प्रायः संघर्ष भी हो जाता था।

No:5. एक बार गौतम बुद्ध ने ही इसी प्रकार के एक संघर्ष को शान्त किया था। कोलियगण के लोग अपनी पुलिस शक्ति के लिए प्रसिद्ध थे।

No:6. कोलियों की राजधानी रामग्राम की पहचान वर्तमान गोरखपुर जिले में स्थित रामगढ़ ताल से की गई है।

(6). कुशीनारा के मल्ल Malls of Kushinara

No:1. यह गणराज्य वर्तमान उ. प्र. के कुशीनगर जिले में स्थित था।

No:2. उसकी राजधानी कुशीनगर थी जिसकी पहचान कुशीनगर जिले के वर्तमान कसिया से की जाती है।

No:3. वाल्मीकि रामायण में मल्लों को लक्ष्मण के पुत्र चन्द्रकेतु मल्ल का वंशज बताया गया।

(7). पावा के मल्ल Pava’s Malls

No:1. यह गणराज्य भी कुशीनगर जिले में स्थित था। उसकी राजधानी पावा थी।

No:2. अजातशत्रु के विरुद्ध मल्लों ने लिच्छवियों का साथ दिया था।

(8). पिप्पलिवन के मोरिय Pippalivan’s Morey

No:1. इस गणराज्य के लोग शाक्यों की ही एक शाखा थे।

No:2. महावंश ग्रन्थ से पता चलता है कि कौशल नरेश विड्डभ के अत्याचारों से बचने के लिए वे हिमालय प्रदेश में भाग गए जहाँ उन्होंने मोरों की कूक से गुंजायमान स्थान में पिप्पलिवन नामक नगर बसा लिया।

No:3. मोरों के प्रदेश का निवासी होने के कारण ही वे ‘मोरिय’ कहे गए।

No: 4. ‘मोरिय’ शब्द से ही ‘मौर्य’ शब्द बना है।

No:5. चन्द्रगुप्त मौर्य इसी परिवार में उत्पन्न हुआ था।

No:6. पिप्पलिवन का समीकरण गोरखपुर जिले में कुसुम्ही के पास स्थित ‘राजधानी’ नामक ग्राम से किया जाता है।

(9). वैशाली के लिच्छवि Lichchavi of Vaishali

No:1. यह गणराज्य वर्तमान बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के समीपवर्ती भागों में स्थित था।

No:2. उसकी राजधानी वैशाली की पहचान मुजफ्फरपुर के बसाठ नामक स्थान से की जाती है।

No:3. लिच्छवियों ने महात्मा बुद्ध के निवास के लिए महावन में प्रसिद्ध कूट्टागारशाला का निर्माण करवाया था जहाँ रहकर बुद्ध ने अपने उपदेश दिए थे।

No:4. लिच्छवि लोग अत्यन्त स्वाभिमानी तथा स्वतन्त्रता प्रेमी हुआ करते थे।

No:5. उनकी शासन व्यवस्था संगठित थी।

No:6. बुद्ध काल में यह राज्य अपनी समृद्धि की पराकाष्ठा पर था।

No:7. यहाँ का राजा चेटक था। उसकी कन्या छलना का विवाह मगध नरेश बिम्बिसार के साथ हुआ था।

No:8. महावीर की माता त्रिशला उसकी बहन थी।

(10). मिथिला के विदेह Videha of Mithila

No:1. यह गणराज्य वर्तमान बिहार के भागलपुर तथा दरभंगा जिलो में स्थित था।

No:2. प्रारम्भ में यह राजतन्त्र था।

No:3. यहाँ के राजा जनक अपनी शक्ति एवं दार्शनिक ज्ञान के लिए विख्यात थे। परन्तु बुद्ध के समय में वह संघ राज्य बन गया।

No:4. विदेह लोग भी वज्जि संघ के सदस्य थे।

No:5. उनकी राजधानी मिथिला की पहचान वर्तमान जनकपुर से की जाती है।

No:6. बुद्ध के समय मिथिला एक प्रसिद्ध व्यापारिक नगर था जहाँ श्रावस्ती के व्यापारी अपना माल लेकर आते थे।

गणराज्यों की शासन व्यवस्था Governance of the republics

No:1. गणराज्यों की शासन व्यवस्था राजतन्त्रों से काफी भिन्न थी।

No:2. राजतन्त्रों में जहाँ शासन का प्रमुख वंशानुगत राजा होता था जिस पर किसी प्रकार का कोई नियन्त्रण न था, वहीं इसके विपरीत गणतन्त्रीय व्यवस्था में निर्वाचित राज्य कुलीनों के सहयोग से शासन करता था।

No:3. वास्तव में गणराज्यों के शासन व्यवस्था के विषय में जानकारी बहुत कम मिलती हैं।

No:4. गणराज्यों में केवल लिच्छवियों के शासन व्यवस्था के विषय में विस्तृत जानकारी मिलती है।

No:5. सम्भवतः इसी व्यवस्था को समकालीन अन्य गणराज्यों ने कुछ परिवर्तनों के साथ अपनाया होगा।

No:6. गणराज्यों की कार्यपालिका का अध्यक्ष एक निर्वाचित पदाधिकारी होता था जिसे ‘राजा’ कहा जाता था।

No:7. सामान्य प्रशासन की देख-भाल के साथ-साथ गणराज्य में आन्तरिक शान्ति एवं सामन्जस्य बनाए रखना उसका एक प्रमुख कार्य था।

No:8. अन्य पदाधिकारियों में उपराजा (उपाध्यक्ष), सेनापति, भाण्डागारिक (कोषाध्यक्ष) आदि प्रमुख थे।

No:9. परन्तु राज्य की वास्तविक शक्ति एक केन्द्रीय समिति अथवा संस्थागार में निहित होती थी।

No:10. इस समिति के सदस्यों की संख्या काफी बड़ी होती थी। समिति के सदस्य भी ‘राजा’ कहे जाते थे।

No:11. एकपण्ण जातक के अनुसार लिच्छवि गणराज्य की केन्द्रीय समिति में 77.07 राजा थे तथा उपराजाओं, सेनापतियों और कोषाध्यक्षों की संख्या भी यही थी।

No:12. इसी प्रकार एक स्थान पर शाक्यों के संस्थागार के सदस्यों की संख्या 500 बतानी गई है।

No:13. ये सम्भवतः राज्य के कुलीन परिवारों के प्रमुख थे जिन्हें ‘राजा’ की पदवी का अधिकार था।

No:14. प्रत्येक राजा के अधीन उपराजा, सेनापति भण्डागारिक आदि पदाधिकारी होते थे।

No:15. इससे ऐसा प्रतीत होता है कि लिच्छवि राज्य अनेक छोटी-छोटी प्रशासनिक इकाइयों में विभक्त था तथा प्रत्येक इकाई का अध्यक्ष एक राजा होता था जो अपने अधीन पदाधिकारियों की सहायता से उस इकाई का शासन चलाता था।

No:16. प्रत्येक इकाई के अध्यक्ष केन्द्रीय समिति के सदस्य होते थे।

No:17. गणराज्यों से सम्बन्धित सभी महत्वपूर्ण विषयों, जैसे सन्धि विग्रह, कूटनीतिक सम्बन्ध, राजस्व संग्रह आदि के ऊपर केन्द्रीय समिति के सदस्य संस्थागार में पर्याप्त वाद-विवाद के पश्चात् बहुमत से निर्णय लेते थे।

No:18. जब रोहिणी नदी के जल वितरण के सम्बन्ध में कोलियों तथा शाक्यों के बीच विवाद हुआ तो उन्होंने अपने-अपने अधिकारियों को सूचित किया तथा अधिकारियों ने अपने राजाओं को बताया।

No:19. राजाओं ने इस विषय पर पर्याप्त वाद विवाद के पश्चात् युद्ध का निर्णय लिया।

No:20. इस प्रकार कोशल नरेश विड्डभ द्वारा शाक्य गणराज्य पर आक्रमण किए जाने तथा उनकी राजधानी का घेरा डालकर उनसे आत्म-समर्पण के लिए कहे जाने पर शाक्यों ने अपने संस्थागार में आत्म-समर्पण अथवा युद्ध करने के ऊपर विचार विमर्श किया।

No:21. अन्त में बहुमत से आत्म-समर्पण का निर्णय लिया गया। लिच्छवि गणराज्य में सेनापति के चुनाव का भी एक विवरण प्राप्त होता है।

No:22. तदनुसार सेनापति खण्ड की मृत्यु के बाद सेनापति सिंह की नियुक्ति संस्थागार के सदस्यों द्वारा निर्वाचन के आधार पर की गई थी।

No:23. कुशीनारा के मल्लों ने बुद्ध की अन्त्येष्टि तथा उनकी धातुओं के विषय में अपने संस्थागार में विचार-विमर्श किया था।

No:24. इन उल्लेखों से स्पष्ट है कि गणराज्यों का शासन जनतन्त्रात्मक ढंग से चलाया जाता था।

No:25. संस्थागार की कार्यवाही आधुनिक प्रजातन्त्रात्मक संसद के ही समान थी।

No:26. प्रत्येक सदस्य को बैठने के लिए अलग-अलग व्यवस्था की जाती थी।

No:27. उस कार्य के लिए आसनपन्नापक नामक अधिकारी नियुक्त था।

No:28. कोरम की पूर्ति प्रस्ताव रखने मतगणना आदि के लिए सुस्पष्ट एवं सुनिश्चित नियम होते थे।

No:29. संस्थागार में रखा जाने वाला प्रस्ताव सामान्यतः तीन बार दोहराया जाता था, तथा विरोध होने पर स्वीकार कर लिया जाता था।

No:30. विरोध होने पर बहुमत लिया जाता था। गुप्तमत-प्रणाली की प्रथा थी। अनुपस्थित सदस्य के मत लेने के भी 1 यम बने हुए थे।

No:31. मतदान अधिकारी को ‘शलाका ग्राहक कहा जाता था। प्रत्येक सदस्य को अनेक रंगों की शलाकाएँ दी जाती थीं।

No:32. विशेष प्रकार के मत के लिए विशेष रंग की शलाका होती थी जो शलाका ग्राहक के पास पहुँचती थी। मत के लिए ‘छन्द’ शब्द का प्रयोग मिलता है।

No:33. विवादग्रस्त विषय समितियों के पास भेजे जाते थे। संस्थागार के कार्यों के संचालन के लिए अनेक पदाधिकारी होते थे।

No:34. गणों की कार्यपालिका का अध्यक्ष ही सम्भवतः संस्थागार का भी प्रधान होता था सामान्यतः गणराज्यों की सरकार पर केन्द्रीय समिति का पूर्ण नियन्त्रण होता था।

No:25. राज्य के उच्च पदाधिकारी तथा प्रादेशिक शासकों की नियुक्ति समिति द्वारा ही की जाती थी।

No:36. गणराज्यों में एक मंत्रिपरिषद भी होती थी जिसमें चार से लेकर बीस तक सदस्य होते थे।

No:37. केन्द्रीय समिति द्वारा ही नियुक्त किए जाते थे। गणाध्यक्ष ही मन्त्रिपरिषद का प्रधान होता था।

No:38. केन्द्रीय समितियाँ न्याय का भी कार्य करती थीं।

Suggested : what is non cooperation movement

Que.-1.विश्व का सबसे बड़ा द्वीप कौन है?

(a) सुमात्रा

(b) श्रीलंका

(c) ग्रीनलैंड

(d) जावा

Ans : (c) ग्रीनलैंड

Que.-2.क्षेत्रफल के दृष्टि से सबसे छोटा राज्य है?

(a) सिक्किम

(b) मणिपुर

(c) हिमालच प्रदेश

(d) गोवा

Ans : (d) गोवा

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top