Way of Joining of Timbre Components in Carpentry in Hindi - SSC NOTES PDF

Way of Joining of Timbre Components in Carpentry in Hindi

बढ़ईगिरी में जोड़ का तात्पर्य लकड़ी को आपस में जोड़ने से है। इस क्रिया में जोड़ों को मजबूती से बनाना तथा व्यर्थ में लकड़ी ना काटने आदि क्रियाएं सम्मिलित है। उपयोगिता के आधार लकड़ी संबंधी जोड़ों को साधारणतया दो वर्गों में बांटा गया है-

No.-1. जुड़ाई कार्य में प्रयुक्त जोड़

No.-2. बढ़ईगिरी में प्रयुक्त जोड़

जुड़ाई कार्य में प्रयुक्त जोड़ | Joints in Joining

No.-1. इन जोड़ों का मजबूती के अतिरिक्त सुंदर प्रतीत होना भी आवश्यक है। अतः जोड़ने से पहले लकड़ी के भागों को ठीक प्रकार साइज के अनुसार काटना तथा समतल करना अनिवार्य है।

बढ़ईगिरी में लकड़ी को आपस में जोड़ने के तरीक़े | Way of Joining of Timbre Components in Carpentry in Hindi

No.-1. जोड़ों का वर्गीकरण:- जोड़ के अवयवों के आपस में संयोजन के आधार पर सभी जोड़ों को निम्न प्रकार वर्गीकृत किया गया है:-

No.-1. बट जोड़(But Joints):-   बट जोड़ के अंतर्गत निम्न प्रकार के जोड़ सम्मिलित है:-

No.-1. सीधा या सरल किनार जोड़ (Straight or Plain-edge Joint):- इसमें दोनों भागों के किनारे को एक साथ वाइस में बांधकर समतल किया जाता है। फिर दोनों सतहों पर सरेस लगाकर चिपका दिया जाता है तथा इनको शिकंजे में कस दिया जाता है। सूख जाने के बाद इसमें मजबूती आ जाती है।

सीधा या सरल किनार जोड़

No.-2. डावल पिन जोड़ (Dowel Pin Joint):- यह जोड़ सरल किनार जोड़ जैसा ही है परंतु इसमें डावल पिन प्रयोग किए जाते हैं। दोनों भागों को एक सीध में रख रखकर छेद कर दिया जाता है। फिर इसमें डावल पिन पर लगाकर ठोंक दिया जाता है।

No.-3. जीभ और खाँचा जोड़ (Tongue and Groove Joint):- इन जोड़ों में एक लंबी खाँच तथा एक लंबी जीभ बनाई जाती है। कभी-कभी दोनों भागों में खाँच तथा जीभ सरेस से जोड़ दिया जाता है। यह जोड़ साधारणतया लंबे तख्तों, विभाजक दीवारों,  फर्श तथा ड्राइंग बोर्ड आदि में प्रयोग किया जाता है।

No.-2. लैप जोड़ (Lap Joint):- इस जोड़ के अंतर्गत जोड़े जाने वाले दोनों भाग एक दूसरे के ऊपर चढ़े होते हैं। यह बहुत ही मजबूत जोड़ हैं। यह खिड़कियों तथा दरवाजों की चौखटों और डेस्क तथा दराज़ अधिक में प्रयोग किया जाता है। लैप जोड़ के अंतर्गत निम्न प्रकार के जोड़ सम्मिलित है:-

लैप जोड़

No.-1. कोना चढ़ाव जोड़ (End Lap Joint):-   इस जोड़ में चिन्हन गेज से लकड़ी के टुकड़ों पर आधी चौड़ाई पर सेट कर के दोनों भागों की साइड़ों तथा सिरों पर निशान लगाए जाते हैं। निशान लगाते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि गेज द्वारा चयनित मोटाई एक टुकड़े पर काटी जाए तथा दूसरे टुकड़े में शेष रहे। यह जोड़ चौखटों या फ्रेमों के कोनों आदि में प्रयोग किया जाता है।

No.-2. क्रॉस अर्ध जोड़(Cross Lap Joint):- इसमें पहले दोनों टुकड़ों को चिन्हन चाकू या परीक्षण वर्ग से चढ़ाव चौड़ाई के निशान लगाए जाते हैं। पहले रेशों के लंबवत, चौड़ाई के समांतर गेज लाइन पर दोनों चिन्हों पर आरी से कटाई की जाती है। इस जोड़ का प्रयोग गाड़ियों तथा दरवाजे आदि के फ्रेमों में किया जाता है।

No.-3. टी-चढ़ाव जोड़ (T-lap-Joint):- इस टी-अर्ध जोड़ भी कहते हैं। लकड़ी के एक भाग के बीच में तथा दूसरे भाग के एक सिरे को आधा काटकर आपस में जोड़ दिया जाता है।

No.-4. डवटेल चढ़ाव जोड़ (Dovetail Lap Joint):-  इस जोड़ में एक भाग पर आधी मोटाई में डवटेल तथा दूसरे भाग पर आधी मोटाई में पहले की माप का डवटेल खाँचा खींचा जाता है।

No.-5. बेवल-अर्ध जोड़ (Bevel Lap Joint):- यह टी चढ़ाव जोड़ के ही भाँति होता है। परंतु इसके भाग आपस में 90 डिग्री के अतिरिक्त अन्य किसी कोण पर होते हैं।

No.-6. पताम जोड़ (Rebate Joint):- इसमें पताम रन्दे की सहायता से दोनों भागों में समान पताम रेशों की दिशा में बनाए जाते हैं। पतामों की गहराई इस प्रकार रखते हैं कि दोनों भागों को सटाकर रखने पर समतल हो जाए।

No.-3. साल तथा चूल जोड़ (Mortise and Tenon Joints):- इन जोड़ों का प्रयोग बढ़ईगिरी में सबसे अधिक किया जाता है। इसमें एक भाग में आयताकार खाँचा बना बनाया जाता है तथा दूसरे भाग में उस खाँचे के समान उभरा तल बनाया जाता है। साल तथा चूल जोड़ निम्न भागों में बांटा गया है-

साल तथा चूल जोड़

No.-1. Through Mortise and Tenon Joint:- इसमें चूल, साल के अंदर लकड़ी के आर पार पूरी गहराई तक होती है। साल बनाने के लिए दोनों ओर निशान लगाए जाते हैं तथा कटाई की जाती है।

No.-2. Blind Mortise and Tenon Joint:- इसमें चूल साल के अंदर लकड़ी के आर पार नहीं होती। अतः साल लकड़ी के एक और ही कुछ गहराई तक बनाई जाती है।

No.-3. Hunched Mortise and Tenon Joint:- यह फ्रेम के कोनों पर अधिक सख्ती के लिए प्रयोग किया जाता है। इसमें चूल की लगभग 1/3 चौड़ाई कम कर दी जाती है।

No.-4. Grooved Mortise and Tenon Joint:-  इसमें दिल्ले आदि फिट करने के लिए इस जोड़ में साल पर खाँचा भी बनाया जाता है। जिसके लिए हल रन्दे की आवश्यकता होती है। कभी-कभी खाँचे के स्थान पर पताम भी बनाया जाता है। इस दशा में यह पतामी साल तथा चूल जोड़ कहलाता है।

No.-5. Barefaced Mortise and Tenon Joint:- इसमें चूल एक और ही काटी जाती है।

No.-6. Divided Mortise and Tenon Joint:- इसमें चूल दो भागों में विभाजित होती हैं तथा अधिक चौड़ी लकड़ी के लिए प्रयोग किए जाते हैं। यदि चूल दो से अधिक भागों में विभाजित की गई हो तो इसमें पिन जोड़ बनता है और अधिक चौड़े टुकड़ों में प्रयोग किया जाता है।

No.-4. दुजीभी जोड़ (Bridle Joint)

No.-1. कोना दुजीभी जोड़ (Corner Bridle Joint):- इससे खुला साल तथा चूल जोड़ भी कहते हैं। ये फ्रेमों आदि के कोनों पर प्रयोग किया जाता है।

No.-2. टी-दुजीभी जोड़ (T- Bridle Joint):- एक भाग में दो जीभों के बीच झिरी कटी रहती है तथा दूसरे भाग के बीच में खाँचे बने रहते हैं।

बंद दुजीभी जोड़ (Stopped Bridle Joint)

No.-1. डवटेल दुजीभी जोड़ (Dovetail Bridle Joint) :- इसमें झिरी तथा चूल दोनों डवटेल आकार की बनी होती हैं। यह साधारण दुजीभी जोड़ से अधिक मजबूत होती है।

No.-5. डवटेल जोड़ (Dovetail Joint) :- यह लकड़ी के सभी जोड़ों में अधिकतम मजबूत है तथा दराजों और मजबूत बक्सों के बनाने में अधिकतम प्रयोग किया जाता हैं। डवटेल जोड़ को बनाने के लिए सामान्य रूप से प्रयोग किए जाने वाले औज़ार टेनरी आरी, डवटेल रुखानी, धनु आरी,  चिन्हन चाकू परीक्षण वर्ग, बेवेल वर्ग, वाइस तथा मैंलेट आदि हैं।

डवटेल जोड़

डवटेल जोड़ तैयार करना | Preparing Dovetail Joints

No.-1. लकड़ी के टुकड़े को तैयार करने के पश्चात सबसे पहला कार्य डवटेल के लिए A पर निशान लगाना है। फिर दूसरे टुकड़े B की मोटाई t के बराबर डवटेल की गहराई के लिए भी परीक्षण वर्ग तथा चिन्हन चाकू से गेज रेखा लगाई जाती है।

No.-2. अब A पर किनारे से आरंभ करके नीचे की गेज रेखा तक आरी से सॉकेट भाग की कटाई की जाती है फिर दोनों किनारों पर रेशों के लंबवत काटकर कंधे बनाए जाते हैं। सॉकेट का काफी भाग धनु आरी से काट कर निकाल दिया जाता है। इस प्रकार A भाग पूर्ण हो जाता है।

No.-3. अब A भाग को B पर रखकर चिन्हन चाकू या पेंसिल से छाप लगा लिया जाता है। तथा फिर पहले की तरह गेज रेखा खिंचकर आरी तथा रुखानी से कटाई की जाती है। रुखानी से आधी-आधी कटाई दोनों और करनी चाहिए।

No.-4. कभी-कभी B भाग पहले तैयार किया जाता है तथा A का छाप उतारकर बाद में पूर्ण किया जाता है। परंतु पहली विधि अच्छी होती है।

बढ़ईगिरी में प्रयुक्त जोड़ | Joints in Carpentry

No.-1. बढ़ईगिरी में प्रयुक्त जोड़ों के अंतर्गत बड़े प्रकार में लकड़ी के भागों को जोड़ा जाता है। यह अधिकांश लकड़ी के घरों तथा अन्य बाहर के निर्माण कार्य में प्रयोग किए जाते हैं जैसे फर्श, छतों तथा पुलों के ढांचे इत्यादि। यह मुख्यतः दो प्रकार से जोड़ा जाता है- A) जोड़ना B) पलासना

No.-1. जोड़ना (Joints):- इसके अंतर्गत लकड़ी के दो भागों का संयोजन किसी कोण पर किया जाता है। इसमें विभिन्न जोड़ निम्न है-

Square Joint

No.-1. Square Joint:- इसमें दो भाग परस्पर लंब जुड़े होते हैं तथा एक भाग को दूसरे भाग पर सहारा जाता है। इसमें पेंच विकर्णतया लगाई जाती है।

No.-2. सरल जोड़ (Plane जोड़):- इसमें एक भाग को दूसरे भाग पर चढ़ाया या लैप करके किसी भी कोण पर रखा जाता है और पेंच से जोड़ पूर्ण किया जाता है।

तिरक्षा जोड़

No.-1. तिरक्षा जोड़ (Oblique Joint):- इसमें दोनों भागों को 90 डिग्री से अतिरिक्त किसी भी कोण पर जोड़ा जाता है। एक भाग को कोण पर काट कर दूसरे पर पेंच की सहायता से जोड़ते हैं।

माइटर जोड़

No.-1. माइटर जोड़ (Miter Joint):- इसमें दो भागों को काटकर 90 डिग्री के कोण का पर जोड़ा जाता है तथा कोने बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है।

No.-2.  पलास (Splices):- इसके अंतर्गत लकड़ी के दो भाग इस प्रकार जोड़े जाते हैं कि वह एक ही रेखा में हो जाएं और लंबाई बढ़ जाए।

No.-3. उम्मीद है आपको यह आर्टिकल पसन्द आया होगा। किसी प्रकार की अन्य जानकारी के लिए कमेंट में पूछ सकते है।

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Important MCQ’s

Que.-1.6 बड़े व्यापारिक बैंकों का राष्ट्रीयकरण कब किया गया?

(a) 1975 में

(b) 1978 में

(c) 1980 में

(d) 1984 में

Ans : (c) 1980 में

Que.-2.निम्न में से कौन एक कृत्रिम बंदरगाह है?

(a) मुम्बई

(b) कांडला

(c) चेन्नई

(d) विशाखापतनम्

Ans : (c) चेन्नई

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