इस आर्टिकल में घरेलू काम के लिए घरों की इलेक्ट्रिकल वायरिंग के सभी प्रकारों को बताया गया है। घर में निम्नलिखित प्रकार की वायरिंग की जा सकती है।
No.-1. क्लीट वायरिंग
No.-2. सी-टी०एस० (टी०आर०एस०) वायरिंग
No.-3. लकड़ी की केसिंग-केपिंग वायरिंग या P.V.C. चैनल वायरिंग
No.-4. लैड शीथ्ड वायरिंग।
No.-5. कन्डयूट वायरिंग। इसके दो प्रकार हैं: (क) सतह पर कन्ड्यूट (ख) दीवारों के अन्दर कन्ड्यूट वायरिंग।
घरों की इलेक्ट्रिकल वायरिंग के प्रकार | Types of Domestic Wiring in Hindi
No.-1. क्लीट वायरिंग (Cleat Wiring) – इस प्रकार की वायरिंग थोड़े दिन तक काम आने के लिए (Temporary) की जाती है, जैसे कि शादियों आदि में, ताकि पैसा भी कम लगे और मेहनत भी कम। इस प्रकार की वायरिंग सस्ती पड़ती है।
No.-1. इस प्रकार की वायरिग में पोर्सीलीन की क्लीटों को आसानी से दीवारों में गट्टी खोदकर पेचों से 60 सेमी० की दूरी पर लगाते हैं। बाद में इन में वी०आई०आर० की तारें या पी०वी०सी० की तारें खींच-खींच कर डालते है और पेच को कस देते हैं।
No.-2. इस प्रकार की वायरिंग पर मौसम का बहुत असर पड़ता है। क्योंकि यह वायरिंग हर मौसम में खुली रहती है। आजकल इस प्रकार की वायरिंग बहुत कम देखी जाती है, क्योंकि इससे भी सस्ती वायरिंग आ गई हैं।
No.-2. सी०टी०एस० वायरिंग (C.T.S. Wiring) – इस प्रकार की वायरिंग आजकल हर घर में की जाती है क्योंकि यह सस्ती पड़ती है। इसमें सी०टी०सी० या पी०वी०सी० तारें (आजकल केवल P.V.C. तारे) लकड़ी की बैटन पर टीन या तांबे की बनी क्लिपों से लगाते हैं।
No.-1. इस प्रकार की वायरिंग नमी वाले स्थानों के लिए अच्छी रहती है। लेकिन यह गर्मी और तेजाब के वाष्प को नहीं झेल सकती। इसलिए यह वायरिंग वहाँ नहीं करते जहाँ अधिक गर्मी, चोट लगने का खतरा, तेजाब के वाष्प आदि हों। साधारण वायरिंग में क्लिप प्रयोग होते हैं। क्लिप दो प्रकार के होते हैं- (क) लिंक क्लिप (ख) ज्वाइंट लिंक क्लिप ।
No.-1. लिंक क्लिप (Link Clip) -लिंक क्लिपों के लिए लिकिंग आई अलग से होती है। ये निम्न साइजों में मिलती हैं- 25mm,32mm,40 mm,50 mm, 63 mm, 80 mm । इनमें से 40 mm तक की क्लिपों में एक छेद होता है और इससे बड़ी के लिए दो छेद होते हैं। क्लिपें एल्यूमिनियम शीट ग्रेड 19000-0 और 40800-0 से बनी होती हैं।
No.-2. ज्वाइंट लिंक क्लिप (Joint Link Clip) – ये निम्न साइजों में मिलती हैं- 20 mm, 25 mm, 32 mm, 40 mm, 50 mm, 63mm, 70 mm । इनकी मोटाई 0.32 mm होती है और 40 mm साइज तक कील के लिए एक छेद तथा बड़ी साइजों में दो छेद होते हैं।
No.-3. लकड़ी की केसिंग और कैपिंग वायरिंग (Wooden Casing and Caping Wiring)– यह वायरिंग घर के अंदर वायरिंग करने के लिए बहुत अच्छी रहती है और सुन्दर भी लगती है। यह वायरिंग 60 साल पहले काम में लाना शुरू की गई थी। इसमें, पहले दीवारों में दो-दो फुट लगभग 3/4 मीटर पर
No.-4. गट्टियां लगाकर केसिंग को पेचों से कस दिया जाता है। फिर वी०आई०आर० या पीवी०सी० की तारें उनकी नालियों में डालकर ऊपर से केपिंग को पेचों द्वारा कस दिया जाता है।
No.-5. इसका स्थान आलकल पी-वी०सी० या प्लास्टिक की चैनल वायरिंग ने ले लिया है जिसे लगाने की विधि एक सी है पर यह सस्ती तथा जल्दी होने वाली वायरिंग है। इसके केपिंग पर रंग की आवश्यकता नहीं होती क्योंकि इसे जंग तथा दीमक लगने का खतरा बिल्कुल नहीं है। आग लगने का खतरा भी लकड़ी से कम है।
No.-6. केसिंग-केसिंग वायरिंग में यह अवगुण है कि इसको आग जल्दी केसिंग पकड़ती है और चाहे इस पर वार्निश या पेंट लगाया भी गया हो, यह नमी रहित नहीं रह सकती।
No.-7. इस प्रकार की वायरिंग वहाँ नहीं करनी चाहिए। जहां वायरिंग पर चोट लगने का खतरा या आग का भड़काव हो या नमी वाला स्थान हो। इस प्रकार की वायरिंग में पोजेटिव और हाफ तारें एक नली में और नेगेटिव दूसरी नली में से जानी चाहिए। आजकल पी०वी·सी० की बनी केसिंग केपिंग (चैनल) लगती है।
No.-4. लैड शीथ्ड वायरिंग (Lead Sheathed Wiring)– इस वायरिंग में दुहरा या तिहरा कंडक्टर जो कि अलग-अलग इंसूलेटिड होता है, एक ही लैड के खोल में पड़े रहते हैं।
No.-1. इस प्रकार की तारें बहुत आसानी से लकड़ी की बैटन पर धातु क्लिपों से लगती हैं। इस वायरिंग में जहां जोड़ लगाना हो जंक्शन बाक्स लगा कर लगाना चाहिए जिनको बाद में कम्पाउंड में भर देना चाहिए और अच्छी तरह अर्थ कर देना चाहिए। यह वायरिंग बहुत महंगी पड़ती है।
No.-2. पहले यह वायरिंग विद्युत सप्लाई कम्पनी वाले घरों में सप्लाई देने के लिए प्रयोग करते थे। महंगी पड़ने के कारण वे भी इसे अब प्रयोग में नहीं लाते।
No.-5. कंड्यूट वायरिंग (Conduit Wiring) – इस प्रकार की वायरिंग में पी०वी०सी० की तारों को लोहे, स्टील या पी०वी०सी० के पाइपों में डालकर वायरिंग करते हैं।
No.-1. इससे तारों को चोट से, आग से तथा नमी आदि से बचाया जा सकता है। पूरी पाइपों को अर्थ करके शॉक से भी बचाया जा सकता है। इस वायरिंग से घरों की ऑफिसों की, मार्किट की शो खराब नहीं होती। यह वायरिंग दो प्रकार से की जा सकती है-
No.-2. i) सरफेस वायरिंग, ii) कंसील्ड वायरिंग
No.-3. सरफेस वायरिंग (Surface Wiring)-इस प्रकार के पाइपों को (कंड्यूट या पीववी०सी०) दीवार पर लकड़ी के गुटके (Spacers) देकर दो पेंचों से सैडल द्वारा लगाते हैं। स्थान-स्थान पर सुविधा अनुसार Bend, Elbow,Junction box, Tee आदि देते हुए ये पाइपें फिट की जाती हैं। उसके बाद स्टील तार से पाइपों में तारें खींचते हैं। यह वायरिंग वर्कशाप में (फैक्ट्रियों की) की जाती है।
No.-4. सील्ड वायरिंग (Concealed Wiring)- यह वायरिंग आजकल बड़े-बड़े घरों, होटलों, आफिसों में की जाती है। इसमें पाइप (कंड्यूट पी०वी·सी० ) भवन निर्माण करते समय, छत पडने के साथ ही छतों में डाल देते हैं।
No.-5. जब छतों का शटरिंग खुल जाता है तो दीवारों पर पलस्तर होने से पहले सुविधा अनुसार दीवारों में नालियां खोदकर हुंको द्वारा पाइपें फंसा देते हैं। आवश्यकता अनुसार Bend, Elbow, Iron box, Junction box, भी लगते हैं। फिर दीवारों पर पलस्तर होता है। उसके बाद स्टील की तारें द्वारा पी॰वी०सी० की तारें पाइपों में खींचते हैं। इस प्रकार की वायरिंग बाहर से दिखने में तो आती ही नहीं जिससे घरों आदि की शोभा खराब नहीं होती।
घर की नई वायरिंग में सप्लाई देने से पहले निम्नलिखित टैस्ट कर लेने चाहिए :
No.-1. एक कंडक्टर और दूसरे कडक्टर के बीच लेकिज टैस्ट और कंडक्टर से अर्थ लीकेज टैस्ट
No.-1. अविभंगता टैस्ट (Continuity)
No.-2. टैस्ट करना कि क्या पोजेटिव तार स्विच में हैं
No.-3. क्या सारी वायरिंग एक ही मेन स्विच से नियंत्रित है, टैस्ट करना।
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Important MCQ
Que.-1. वर्तमान में U.N.O, में कुल कितने सदस्य है?
(a) 190
(b) 192
(c) 190
(d) 196
Ans : (c) 190
Que.-2. इंदिरा गांधी परमाणु अनुसंधान केन्द्र स्थित है?
(a) कलपक्कम में
(b) नरौरा में
(c) ट्राम्ब में
(d) कोलकाता में
Ans : (a) कलपक्कम में